बस यूँही (HINDI POEMS)

बस यूँही

HINDI POEMS




आज इस अंधेरी रात में बस यूँही ये कविता निकली है
देश को समर्पित मेरी यह कविता खुद में एक फूल की कली है

इसकी नही करूँगा मैं किसी से तुलना 
इसका एक मात्र उद्देश्य है, इसको पूरे देश में है घुलना

पुलवामा में जो हुआ
हर हिन्दुस्तानी की तरह उसने मेरे दिल को भी ख़ूब छुआ

अब एक बार फिर मैं अपने कलम को दौड़ाना चाहता हूँ
अपने लवज़ों को, जो मैं बोल ना पाया, उन्हे अब मैं इस काग़ज़ पर काढना चाहता हूँ

इसे बताने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है
बस ऐसा किसी और के साथ ना हो, अब मेरी दुआ यही है

यह कविता हर उस वीर-जवान को एक मेरी तरफ से इबादत है
पंचतत्व में विलीन होकर आप कहीं गये नहीं हो, आपका हर हिन्दुस्तानी के दिल में स्वागत है

उन चालीस जवानो को मेरा सलाम है
हमारे देश की रक्षा कर आपने दिया हमे बहुत बड़ा इनाम है

जिन्होनें यह किया, उन्होनें कुछ सोचा नहीं ?
अपनी गलियाँ तो बर्बाद की, साथ ही दूसरों की भी मैली कर दी!

अपने से हटकर, अब मैं उनकी गलियाँ सवारना चाहता हूँ
उनकी गलियों को अब मैं गलियारों में तब्दील करना चाहता हूँ

कई लोग इसका उपाय सिर्फ़ युद्ध समझतें है
युद्ध में कुछ नहीं , सिर्फ़  बादल गरजते है


इतना सारा खून ख़राबा उनकी शहादत को चुका न पाएगा
ज़रा सा सोच के देखो, ऐसे देश कभी आगे न बढ़ पाएगा



अब इस बात से हटकर उन पर वापस आया जाए तो, अंत में बस यही कहना चाहता हूँ कि-



सैनिक बनना हर किसी के बस की बात नहीं 
मरके भी जो अमर हो जाए, होती बहुत कम ऐसी कोई करामात कहीं

और अंत में

ऐसे वीर देश में पैदा होना, होती है बहुत बड़ी सौगात कोई!




 -अभिनव श्रीवास्तव


(Novel Series will not be stopped because of these poems. Foreigners following my series will face no problems from my side. You can read other chapters of mine. THANK YOU)

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