मैं प्रतीक्षा करता रह गया (Hindi Poems)

मैं प्रतीक्षा करता रह गया (Hindi Poems)

इस बार आँखों से बस आसूओं को देखता रह गया
वो अवसर न जाने कब निकल गया
मैं बस प्रतीक्षा करता रह गया

मैं समुद्र की गहराइयों को भाँपता रह गया
वो नाव कब ऊपर से निकल गयी
मैं बस प्रतीक्षा करता रह गया

मैं पहाड़ों की चोटियों को जाँचता रह गया
वो सुकून कब नीचे से निकल गया
मैं बस प्रतीक्षा करता रह गया

मैं हवा की गतिविधियों को पढ़ता रह गया
लेकिन वो अवसर तो धीमी हवा में भी उड़ गया 
मैं बस प्रतीक्षा करता रह गया 

मैं आग की ताप को समझता रह गया 
वो अवसर तो ठंडी हवा में भी पिघल गया 
मैं बस प्रतीक्षा करता रह गया 

मैं अपनी काबिलीयतों को खोजता रह गया
वो आँखों से कब ओझल हो गये
मैं बस प्रतीक्षा करता रह गया 

मैं उस अवसर को पाने के लिए कोशिश करता रह गया
वो कब थोड़े में से ही मिल गया था
पर फिर भी मैं बस प्रतीक्षा करता रह गया 

मैं कई उँचाइयाँ छूकर भी और उँचा उठता रह गया
फिर कब धड़ाम से नीचे गिर गया
तभ भी उठने की प्रतीक्षा करता रह गया

मैं कई बार जीत को हार से चुरता रह गया
और एक दिन चोर भी बन गया
फिर भी जीत चुराने की प्रतीक्षा करता रह गया

मैं कई चीज़ों के बाद भी ललचाता रह गया
वही लालच फिर असफलता में बदल गया 
फिर अच्छे समय की प्रतीक्षा करता रह गया

अब इस कविता की सोच को मैं सोचता रह गया
और कब मेरे शब्द बिखर गये, 
फिर मैं उन्हे जोड़ने की प्रतीक्षा करता रह गया, प्रतीक्षा करता रह गया|

-अभिनव श्रीवास्तव

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